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शुक्रवार, 19 जून 2009

गंगाधर मेहेर की दो कविताएँ

गंगाधर मेहेर की दो कविताएँ

(स्वभावकवि गंगाधर मेहेर - १८६२ - १९२४)

मूल उड़िया से हिन्दी अनुवाद : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर

अमृतमय

मैं तो बिन्दु हूँ

अमृत-समुन्दर का,

छोड़ समुन्दर अम्बर में

ऊपर चला गया था

अब नीचे उतर

मिला हूँ अमृत-धारा से ;

चल रहा हूँ आगे

समुन्दर की ओर

पाप-ताप से राह में

सूख जाऊँगा अगर,

तब झरूँगा मैं ओस बनकर

अमृतमय अमृत-धारा के संग

समा जाऊँगा समुन्दर में

( 'अर्घ्यथाली' कविता-संकलन से )

000

सीता-राम का दाम्पत्य प्रेम

सागर के प्रति
सरिता की गति
रहती स्वभाव से
जब शिला-गिरिसंकट
सामने विघ्न-रूप हो जाते प्रकट,
उन्हें लाँघ जाती ताव से

भूल जाती सब
पिछली व्यथाएँ सागर से मिलकर
दोनों के जीवन में तब
रहता नहीं तनिक-भी अन्तर

संयोग-वश यदि बीच में उभर
ऊपर को भेदकर
छिन्न कर डालता बालुका-स्तूप
सरिता और सागर के हृदय को किसी रूप;
वह स्रोतस्वती
मर तो नहीं सकती
सम्हालती अपना जीवन-भार
ह्रद-रूप बन हृदय पसार


कहता हूँ और एक बात,
तुमलोग मन के साथ
सब सम्मिलित होकर
चलो हृदय-सरोवर
उधर अनन्त दिनों तक
रमते रहोगे रस-रंग में अथक

वहाँ खिली है नयी पद्मिनी
मेरी जीवन-संगिनी
स्मरण का सूरज वहीं सदा जगमगाता,
अस्त कभी नहीं जाता

(तपस्विनी-काव्य. द्वितीय-तृतीय सर्ग से)

000

अनु. डॉ. हरेकृष्ण मेहेर

वरिष्ठ रीडर एवं अध्यक्ष, संस्कृत विभाग

सरकारी स्वयंशासित महानविद्यालय, भवानीपाटना, उड़ीसा - 766001

बुधवार, 17 जून 2009

अपनी भाषा हिन्दी

प्यारे हिन्दी को चाहने वाले भाइयों और बहनों,

हिन्दी ब्लॉग के क्षेत्र में यह मेरा नवीन प्रयास हैआज हम हिन्दी भाषियों की और हिन्दी इस उम्मीद से तक रही है कि हम हिन्दी की संतानें हिन्दी को विश्व में उचित स्थान दिलाएंगेयह हमारा फ़र्ज़ भी बनता हैआज अगर हम हिन्दीभाषी ही हिन्दी का प्रयोग ना करेंगे तो हम दुसरे भाई बंधुओं से हिन्दी को सम्मान देने की बात कैसे सोच सकते हैंकोई भी भाषा तभी आगे बढती है जब उसके प्रयोक्ता बन्धु भाषा को आगे बढ़ने की दिशा में दिलो-जान से प्रयास करते हैंआइये, हिन्दी का प्रयोग करें, हिन्दी का सम्मान करेंहिन्दी केवल अपनी भाषा नही अपनी सामासिक संस्कृति का हिस्सा हैहिन्दी बढेगी हम बढ़ेंगे, हिन्दी बढेगी राष्ट्र बढेगा, हिन्दी बढेगी सम्मान बढेगा....

जय हिंद
जय हिन्दी

डॉ राकेश

मंगलवार, 16 जून 2009

हिंदी है जन-जन की भाषा

हिंदी है जन-जन की भाषा
हिंदी है जीवन की भाषा
हिंदी है हर मन की आशा
हिंदी अपनेपन की भाषा

हिंदी बढती ही जायेगी
हिंदी जनता को जगाएगी
हिंदी को जो लहर आएगी
अंग्रेजी फिर कहाँ टिक पायेगी

आओ करें हिंदी का पूजन
हिंदी सीखे हिंद का हर जन
आओ करें अपना तन-मन-धन
हिंदी की सेवा में अर्पण