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बुधवार, 10 मार्च 2010

ओम श्री भ्रष्ट्चारय नमः



हरे नीले नोटों पर तुमने दिया वरदान
तुम कुबेर के द्वार हो, तुम रतन धन खान
तुम बिन भारतवर्ष में कहीं न गलती दाल
जय जय भ्रष्टाचार गुरू, जय जय भ्रष्ट कृपाल ॥॥

जय भ्रष्टाचार महा महिमा ।
जय दुर्नीति जय गुण गरिमा ॥

तुम्हरे भजन सरकार को भावे
मंत्री-संतरी सब गुण गावे ॥

घोटाले की तुम हो माता
तुम्हारी माया कोई समझ ना पाता ॥

और-छोर तुम्हारा नहीं जग में
तुम व्यापे हो देश की रग-रग में ॥

भारत देश तुम्हें अति प्यारा
हर कोई तुमसे गया मारा ॥

बोफ़र्स की जो तोप चलाई
डगमग हो गई कांग्रेस आई ॥

लालू यादव दूत तिहारा
निगल गया भेंसों का चारा ॥

तुम्हारी महिमा जो नर गावे
भर भर नोट जेब में जावे ॥

नेता नाम तुम्हे अति प्यारा
अद्‍भुत ये जीव तुमने उतारा ॥

सुखराम को तुमने वर दिन्हा
मधु कौड़ा ने मधुरस लिन्हा ॥

इनकी करतूत यह जन जाने
यह वायरस बस नोट पहिचाने ॥

घूस रिश्वत कई नाम तिहारे
इनसे मिले कईयों को सहारे ॥

स्विस बैंक हरिद्वार तिहारा
नेता का बैकुंठ यह प्यारा ॥

यहां पहुंच जो नर जाता
सात पुश्त तक मौज मनाता ॥

काला धन यहां जो आता
क्षणभर में गोरा हो जाता ॥

नेता मंत्री तुम सबके रक्षक
दो नंबर के माल के भक्षक ॥

कार्यालय में तुम्हारा डेरा
मंत्रालय में तुम्हारा बसैरा ॥

सचिवालय में तुम्हारा आसन
निर्देशालय में तुम सिद्धासन ॥

कलयुग के तुम सच्चे साधक
कौन यहां तो तुम्हारा बाधक ॥

जब भी किसी ने आवाज़ उठाई
नोट के बल पर मुंह की खाई ॥

जो ईमानदार सामने आता
बेईमानों का जूता खाता ॥

तुम्हरे बल सब संभव हो जाता
तुम हो तो मन नहीं घबराता ॥

पासपोर्ट और राशन-पानी
तुम हो तो न आना-कानी ॥

जब तुम अपना परताप दिखाते
कैसे भी टेंडर पास हो जाते ॥

अफ़सर बाबुओं के तुम तारक
ठेकेदारों के तुम उद्धारक ॥

जो जो तुम्हरे शरण में आता
भिक्षुक भी सम्राट कहलाता ॥

बहुत बदबख्त बशर तेरा दौरे-जमाँ निकला....


बाद रहज़नी के कुछ यूं सफ़र का समा निकला
फ़िर लूटा के शुकुं जिस्त का कारवां निकला ॥

सिवा कत्ल के कोई न थी रज़ा तेरी मगर
दर्द से ज्यादा हर दर्द का सामां निकला ॥

बिक गया निशात-ए-जि़गर यूं सरे शहर
कुछ इस कदर इस बेकद्र का कद्रदां निकला ॥

लिखते थे दर्द कि वज़ा न हो बेअसर
बहुत बेदर्द मगर मेरा दर्द ख्वां निकला ॥

जब्ज़-ए-जख्म से यूं नशर हुआ ज़िगर
बहुत बदबख्त बशर तेरा दौरे जमां निकला ॥

यूं सर-ए-मकतल तेरा रू बेबयां निकला
बेदिल जुबां निकली, दिल बेबयां निकला ॥

बेबयां इशरत था जीस्त-ए-तनहा का सफ़र
तंग तो बहुत था पर तेरे कूचे से आसां निकला ॥

उलझ गए ये दर्द के पुरज़े दिल में कुछ इस कदर
कि मर्ज से मुश्किल मर्ज का दरमां निकला ॥

दाग-ए-रू धुले अश्कों से तो निखरा है चैहेरा कुछ यूं
बाद बदली के ज्यों खुलकर आसमां निकला ॥

सोमवार, 1 मार्च 2010

पाकिस्तानी को हाकी क्यों मारी..


पाकिस्तानी को हाकी क्यों मारी..

लगता है अस्ट्रेलिया की भारत से पिछले जनम की कोई दुश्मनी रही है । पहले क्रिकेट में भारत की बढ़्ती बादशाहत देख कर कंगारुओं को जो मिर्ची लगी वो देखने लायक थी । कभी हरभजन पर चकिंग का आरोप लगा दिया, कभी भारतीय टीम पर नस्लवाद का आरोप लगा कर पिल पड़े । भारतीय क्रिकेट के हर प्रतिभावान खिलाड़ी पर उनके जलकुकड़े खिलाड़ी,अंपायर और रैफ़री की काली नज़र पड़ती रही है । परमाणु सहयोग के क्षेत्र में अस्ट्रेलिया सदा से भारत की राह का रोड़ा बना है । आजकल ये कंगारू अस्ट्रेलिया में पढ़ने गए भारतीय छात्रों पर खिसियायी बिल्लियों की तरह टूट पड़े हैं । इस कड़ी में कल यह देखने के लिए आया कि अस्ट्रेलियन हांकी रैफरी को भारत की पाकिस्तान पर शानदार जीत से बेचैन कर देने वाली बदहजमी पैदा हो गई । भारत की इस जीत को जब वो किसी दम पचा ना पाया तो भारतीय स्ट्राईकर शिवेन्द्र सिंह पर तीन मैंचों का प्रतिबंध ठोक दिया । शिवेन्द्र का गुनाह यह था कि ड्रिवलिंग के दौरान उनकी हाकी पाकिस्तानी खिलाड़ी की नाक को चूम लिया । कोई अंधा भी इसका रिप्ले देखकर बता सकता है कि शिवेंद्र का इरादा साथी खिलाड़ी को घायल करना कतई न था और वो घायल हुआ भी नहीं । पर गोरी चमड़ी के रैफ़री को इससे क्या मतलब ...!! उसे तो बस भारत की खेल-शक्ति को कुंद करने का जुगाड़ भिड़ाना था सो उसने भिड़ा लिया ।

अब भारतीय हाकी संघ और भारत सरकार को इस मामले सीधे हस्तक्षेप करते हुए इस अन्याय का उपचार करना चाहिए । यह एक खिलाड़ी ही नहीं पूरी टीम के लबालब आत्मविश्वास को तोड़ने की धिनोनी साज़िश है । अन्याय चाहे छोटा हो बडा होता तो अन्याय ही है । अगर इसका पुरजोर विरोध नहीं किया गया तो इन गोरे शेतानों का होसला ओर बढ़ेगा ।