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रविवार, 10 अप्रैल 2011
खोज जारी है....
खोज जारी है....
गूगल अर्थ पर खोज रहा हूँ,
बचपन का वो की विस्मृत गलियाँ
आकाश की नज़र से
देख रहा हूँ कि कहीं कोई
दिख जाए चिरपरिचित पगडंडी
कोई घरौंदा अब भी समय की रेत पर
सलामत हो शायद कहीं......
जीवन के तीव्रता से कटते मोडों पर
गाँव की नदी के मोड पर
बरगद की छाहं बड़ी याद आती है...
फ़ेसबुक पर सर्च करता हूँ
विछड़े दोस्तों के नाम
कि कहीं शायद कोई मुझसा भी तनहा
खोज रहा हो रेत पर सीपियों को यहीं कहीं..
धुंधलाते कॉलेज के दोस्तों के चेहरे
वो चहक, निश्छल ठहाकों से सोंधी शामें
मन स्कैन नहीं कर पाता हूबहू अब उसे
बुढिया के झोंपड़े सा उपेक्षित
अपने कस्बे से दूर यहाँ
बैठा हूँ एकदम अकेले
ओढ़ी हुई मुस्कान लिए
सदभावना और सलीके से
धन दौलत इज्ज़त शोहरत के द्विप में
सर्च इंजनों के जंगल के बीच
उस शै से दूर
लोग जिसे जिंदगी कहते थे कभी.....
मंगलवार, 4 जनवरी 2011
कितना आज़ तृषित मन मेरा....
दुःख के बादल, सुख की छईंया
चिनगी चिनगी मन की बगिया
प्रियतम तेरे रूप दरश को
कितना आज़ तृषित मन मेरा....
पीली फूलों की क्यारी सा
मेरा मन उमग ही जाता
सांझ दुआरे जब तम लाती
जल जाती तब प्रिय मन बाती
मधुर पीर की रस बूंदों से
कितना आज़ सिंचित मन मेरा....
बीती अनबीती जो मन पर
धूप छांव सी कथा रही वो
मनाकाश पर दुःख की बदली
नैन नीर की व्यथा रही जो
प्रिय तेरे कर नेह किरणों से
कितना आज़ वंचित मन मेरा....
अंतर के महाकाश पर
उर का झिलमिल दूर सितारा
समय गति की निहारिका में
भटक भटक कर यह मन हारा
तृष्णा के अदृश्य रंग में
कितना आज़ रंजित मन मेरा.....
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