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बुधवार, 30 मई 2012
इंसान की जिंदगी
Myspace Graphics मैं आज के इंसान की जिंदगी को कुत्ते की पूंछ के समान समझता हूँ जो टेढ़ी रहे तो पूरी मानवता उसकी एक भौंक से डरती है पर सीधी हो जाए तो पागल समझ कर सारी भीड़ उसपर झपटती है| मैं आज के इंसान की जिंदगी को सरकारी स्कूल के ब्लैकबोर्ड के समान समझता हूँ जो जितना काला रहे उतना साफ है और यदि कभी उसपर सफेदी आ जाए तो डस्टर रूपी समाज उस पर चलता है क्यौंकि सफेदी से वो जलता है| मैं आज के इंसान की जिंदगी को क्रिकेट की बॉल के समान समझता हूँ जो अपने नयेपन की चमक से विपक्षी को परेशान करे तो ठीक पर पुरानी होने पर परिजन रूपी क्रिकेटर भी उससे डरते हैं ईश्वर रूपी अंपायर से उसे बदले की अपील करते हैं।
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