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गुरुवार, 11 नवंबर 2010

इतनी भी दीनता ठीक नहीं....


इतनी भी दीनता ठीक नहीं....

इतनी भी दीनता ठीक नहीं
जीवन उपहार है भीख नहीं
बस यही राह है चलने की
ऐसी ही तो कोई लीक नहीं
इतनी भी......(1)

थम जाऊं देख पहाड़ अगर
फिर कैसी राह, फिर कया है डगर
किंतु-परंतु, शायद और यदि
बस यही जीवन की सीख नहीं
इतनी भी......(2)

निज स्वार्थ जहां देखा मन ने
गौरव ने घुटने टेक दिए
बिक गया इमां इंसा का यहां
पर अंतर की कोई चीख नहीं
इतनी भी.....(3)


मुट्ठी भर सांसों की थाती
निजता परता में बिखर गई
धन पे जिए धन पर ही मरे
पर क्षण भर रुकने की दीक नहीं
इतनी भी.....(4)

जीना था जिए कोई हर्ज नहीं
पर राह नई ना गढ़ पाए
हासिल हैं मुकाम कहने को कई
पर शिखर कोई नजदीक नहीं
इतनी भी….(5)