शीर्षक
- अपनी भाषा हिन्दी (1)
- अब भी याद आए गांव.... (1)
- आज़ विरह की रात.. (1)
- इतनी भी दीनता ठीक नहीं.... (1)
- ओ गौरेया..... (1)
- ओम श्री भ्रष्ट्चारय नमः (1)
- कहाँ स्लमडॉग हिंदी और कहाँ मिलियनारी अंग्रेजी (1)
- कहीं आपको नेटमानिया तो नहीं... (1)
- कितना आज़ तृषित मन मेरा.... (1)
- कोई जूते से ना मारे मेरे दिवाने को (1)
- खोज जारी है.... (1)
- गंगाधर मेहेर की दो कविताएँ (1)
- जीवन (1)
- पाकिस्तानी को हाकी क्यों मारी. (1)
- पेतेन (1)
- बबुआ अर्जुन के साथ ओपनिंग करने का इरादा है का ..... (1)
- बहुत बदबख्त बशर तेरा दौरे-जमाँ निकला.... (1)
- माटी (1)
- मियां सचिन (1)
- ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं.... (1)
- हिंदी (1)
- हॉकी और बाघ (1)
- Hindi (1)
हिंदी है जन-जन की भाषा,हिंदी है भारत की आशा
सुस्वागतम
Pages
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
इतनी भी दीनता ठीक नहीं....
इतनी भी दीनता ठीक नहीं....
इतनी भी दीनता ठीक नहीं
जीवन उपहार है भीख नहीं
बस यही राह है चलने की
ऐसी ही तो कोई लीक नहीं
इतनी भी......(1)
थम जाऊं देख पहाड़ अगर
फिर कैसी राह, फिर कया है डगर
किंतु-परंतु, शायद और यदि
बस यही जीवन की सीख नहीं
इतनी भी......(2)
निज स्वार्थ जहां देखा मन ने
गौरव ने घुटने टेक दिए
बिक गया इमां इंसा का यहां
पर अंतर की कोई चीख नहीं
इतनी भी.....(3)
मुट्ठी भर सांसों की थाती
निजता परता में बिखर गई
धन पे जिए धन पर ही मरे
पर क्षण भर रुकने की दीक नहीं
इतनी भी.....(4)
जीना था जिए कोई हर्ज नहीं
पर राह नई ना गढ़ पाए
हासिल हैं मुकाम कहने को कई
पर शिखर कोई नजदीक नहीं
इतनी भी….(5)
सदस्यता लें
संदेश (Atom)