शीर्षक
- अपनी भाषा हिन्दी (1)
- अब भी याद आए गांव.... (1)
- आज़ विरह की रात.. (1)
- इतनी भी दीनता ठीक नहीं.... (1)
- ओ गौरेया..... (1)
- ओम श्री भ्रष्ट्चारय नमः (1)
- कहाँ स्लमडॉग हिंदी और कहाँ मिलियनारी अंग्रेजी (1)
- कहीं आपको नेटमानिया तो नहीं... (1)
- कितना आज़ तृषित मन मेरा.... (1)
- कोई जूते से ना मारे मेरे दिवाने को (1)
- खोज जारी है.... (1)
- गंगाधर मेहेर की दो कविताएँ (1)
- जीवन (1)
- पाकिस्तानी को हाकी क्यों मारी. (1)
- पेतेन (1)
- बबुआ अर्जुन के साथ ओपनिंग करने का इरादा है का ..... (1)
- बहुत बदबख्त बशर तेरा दौरे-जमाँ निकला.... (1)
- माटी (1)
- मियां सचिन (1)
- ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं.... (1)
- हिंदी (1)
- हॉकी और बाघ (1)
- Hindi (1)
हिंदी है जन-जन की भाषा,हिंदी है भारत की आशा
सुस्वागतम
Pages
मंगलवार, 7 दिसंबर 2010
ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं....
Myspace Graphics
नीले आकाश पर आज़
कसक की पीली स्याही से
लिख देना चाहता हूं कुछ अनगढ़े शब्द...
ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं....
यह शब्द केवल शब्द नहीं
ध्वनि चिह्न नहीं मात्र
सहस्र सहस्र अश्रुओं से धुले-पुंछे
अनंत उसांसों की ताप से तपे
प्रत्येक कोण इन अक्षरों के
यथार्थ के प्रहारों से कटे-छंटे
समय की अविरल लहरों से
कगार की विदीर्ण शिलाओं से
ये शब्द जीवन के मूक संकेतों की
विजय कथा गढ़ते हैं
ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं.....
सदस्यता लें
संदेश (Atom)