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मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं....




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नीले आकाश पर आज़
कसक की पीली स्याही से
लिख देना चाहता हूं कुछ अनगढ़े शब्द...

ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं....

यह शब्द केवल शब्द नहीं
ध्वनि चिह्न नहीं मात्र
सहस्र सहस्र अश्रुओं से धुले-पुंछे
अनंत उसांसों की ताप से तपे
प्रत्येक कोण इन अक्षरों के
यथार्थ के प्रहारों से कटे-छंटे
समय की अविरल लहरों से
कगार की विदीर्ण शिलाओं से
ये शब्द जीवन के मूक संकेतों की
विजय कथा गढ़ते हैं
ये शब्द यूं ही नहीं बनते हैं.....